‘अप्प दीपो भव’ अर्थात् ‘अपना दीपक स्वयं बनो।’ महात्मा बुद्ध के इस सूक्ति वाक्य की अक्सर गलत व्याख्या कर दी गई। दरअसल, कोई भी शिष्य अपना दीपक स्वयं को तभी बना सकता है, जब उसके अंतस में किसी सदगुरु ने ज्ञान का लौ जला दिया हो। ‘अप्प दीप भव’ दीक्षांत के समय का सार्थक वाक्य है। कोई गुरु दीक्षा पूर्ण होने के पश्चात ही शिष्य को उसका दीपक स्वयं बनने की बात कह सकता है। हमें ध्यान रखना चाहिए कि यह वाक्य सिद्धार्थ नहीं ‘तथागत’ (जो सिद्धि प्राप्त कर चुका हो) ने कहा था। अतएव, यह सूक्ति वाक्य गुरु की महत्ता को खारिज नहीं करता, वरन उसकी अनिवार्यता पर जोर देता है। गुरु के बिना शायद हम इस सूक्ति का अर्थ भी नहीं समझ सकते।
‘गुरु’ शब्द ‘गु’ और ‘रु’ से मिलकर बना है। ‘गु’ का अर्थ है-‘अंधकार’ और ‘रु’ का अर्थ है- ‘प्रकाश’। अर्थात् गुरु वह है, अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाए। गुरु वह है, जो मलिनता से दिव्यता की ओर ले जाए। गुरु वह है जो शिष्य के भीतर सुषुप्त प्रकाश स्रोत को जाग्रत कर दे। इसीलिए कबीर ने गुरु को गोविन्द से भी श्रेष्ठ बताया है। गुरु ही शिष्य का गोविन्द से परिचय करा सकता है। कबीर के अनुसार गुरु ही तमाम बंधनों से मुक्ति दिला सकते हैं। वे लिखते हैं –
‘पीछे लागा जाई था लोक वेद के साथि।
आगे थे गुरु मिलिया दीपक दिया हाथि।
दीपक दिया तेल भरि, बाति देई अघट्ट
पूरा किया विसाहुना बहुरि न आबहु हट्ट।”
कबीर के अनुसार गुरु ही सांसारिक आवागमन से मुक्ति दिला सकता है। कबीर ने जहां एक ओर गुरु की महत्ता को सिद्ध किया है, वहीं शिष्य को भी निर्देशित किया है कि गुरु बहुत सोच समझ कर बनाना चाहिए। गुरु अगर अज्ञानी हो तो वह अपने साथ शिष्य को भी ले डूबेगा। लिखते हैं कबीरदास-
“गुरु बेचारा अंधला, चेला खड़ा निरंध
अंधे अंधा ठेलया, दोनों कूप परंत।।”
कबीरदास हमेशा गुरु की जगह ‘सदगुरु’ की बात करते हैं। सदगुरु, अर्थात ऐसा गुरु जो सत्य का बोध करा दे। आज गुरु के स्थान पर ‘शिक्षक’ शब्द प्रचलन में है। शिक्षक वह है, जो ‘शि’= शिष्ट, ‘क्ष’= क्षमाशील और ‘क’= कर्त्तव्यनिष्ठ हो। आचार्य चाणक्य ने धनानंद की भरी सभा में ‘शिक्षक’ शब्द को परिभाषित करते हुए कहा था- ‘शिक्षक कभी साधारण नहीं होता, प्रलय और निर्माण दोनों उसकी गोद में खेलते हैं।’
हमारे देश में अनादिकाल से गुरु और शिष्य की गौरवमयी परंपरा रही है। भगवान परशुराम, वेदव्यास, गुरु वशिष्ठ, विश्वामित्र, आचार्य द्रोण, यायाज्ञवल्क्य से लेकर वर्धमान महावीर, महात्मा बुद्ध, चाणक्य, आदि शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, वल्लभाचार्य, रामानंद, विट्ठलनाथ, गोरखनाथ, सरहपा और कबीरदास का नाम अत्यंत सम्मान के साथ लिया जाता है। आधुनिक भारत में दयानंद सरस्वती, रामकृष्ण परमहंस, महादेव गोविंद राणाडे, स्वामी विवेकानंद, गुरु रवींद्रनाथ टैगोर तक यह परंपरा अक्षुण्ण रही है।
पाश्चात्य गुरुओं में सुकरात, प्लेटो और अरस्तू की परंपरा मिलती है। सही अर्थों में गुरु वही है, जो शिष्य को उनकी संभावनाओं के उत्कर्ष तक पहुँचा दे। सच में प्लेटो के बिना अरस्तू, अरस्तू के बिना सिकंदर, चाणक्य के बिना चन्द्रगुप्त, रामकृष्ण परमहंस के बिना विवेकानंद की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।
वर्तमान समय में लोगों ने ‘गूगल’ को ‘गुरु’ का विकल्प बनाना शुरु किया है। उसे लगता है कि गूगल में ही सृष्टि का संपूर्ण रहस्य छिपा है। अब गुरु जैसे शब्द अप्रासंगिक हो गये हैं। ‘कर लो दुनिया मुट्ठी में’ जैसे नारों से गुरु या शिक्षक का शानदार विकल्प खोज निकाला गया है। सोचने की बात यह है कि क्या गूगल से शिक्षक को ‘रिप्लेस’ किया जा सकता है? क्या गूगल की भाँति शिक्षक केवल सूचनाओं का खजाना भर है? या दोनों में कोई अलगाव है। इसे स्पष्ट रूप से समझने के लिए पहले हमें इसपर विचार करना होगा कि क्या ‘सूचना’ और ‘ज्ञान’ एक दूसरे से अलग है या एक ही है। विचारकर देखें तो दोनों एक नहीं हो सकता। सूचना हमें बौद्धिक रूप से समृद्ध बनाता है, जबकि ज्ञान हमारे चरित्र को उज्ज्वल और उदात्त बनाता है। सूचना बोझ है और ज्ञान मुक्ति। सूचना का संबंध मस्तिष्क से है, पर ज्ञान का संवेदना से। सूचना विभाजन सिखलाती है, परंतु ज्ञान हमें सृष्टि के साथ जोड़ती है। अष्टावक्र ने इसे स्पष्ट करते हुए कहा था कि, ‘हम और तुम एक-दूसरे से पृथक हैं, यही अविद्या (अज्ञान) है तथा संपूर्ण सृष्टि के साथ अपनी अखंडता का बोध विद्या (ज्ञान) है।
अब हम सहज रूप से समझ सकते हैं कि सूचना और ज्ञान एक नहीं है। दोनों में मूलभूत अंतर है। कहना न होगा कि गूगल हमें सूचना प्रदान करता है, जबकि गुरु से हम ज्ञान प्राप्त करते हैं। अतएव, गूगल कभी भी गुरु का विकल्प नहीं हो सकता। चूँकि गूगल हमें सूचना प्रदान करता है और गुरु सूचना को ज्ञान में परिवर्तित करते हुए हममें अपने व्यक्तित्व का भी आत्मसातीकरण कर देते हैं। इस ज्ञान के साथ हम चरित्र और नैतिकता के पाठ भी पढ़ते चले जाते हैं। एक सच्चा गुरु ज्ञान का साक्षात्कार कराता है, जो गूगल कभी नहीं कर सकता।
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डाॅ. उमेश कुमार शर्मा