‘भूमंडलीकरण’ अंग्रेजी के ‘ग्लोबलाइजेशन’ का हिन्दी पर्याय है, जिसके लिए विश्वग्राम, वैश्वीकरण आदि शब्द भी प्रयुक्त होते हैं। किसी व्यक्ति, वस्तु, विचार या भाव को क्षेत्रीय सीमा से उठाकर संपूर्ण भूमंडल में फैला देना ही भूमंडलीकरण है। आज भूमंडलीकरण के दौर में जब हमारे समाज पर बाजारवाद हावी है। लोग तमाम चीजों को नफे और नुकसान की कसौटी पर परख रहे हैं, पारिवारिक एवं सामाजिक रिश्तों में तनावपूर्ण स्थिति बनी है। लोग अपने निजी स्वार्थ को सिद्ध करने को व्याकुल हैं। रिश्तों की गर्माहट खत्म हो रही है और मनुष्य एकाकीपन के शिकार हो रहे हैं, ऐसे में समाजवादी विचार अत्यंत प्रासंगिक प्रतीत हो रहा है। समाजवाद एक विचारधारा है, जो जाति, वर्ग, धर्म, संप्रदाय तथा लिंग के दायरे से ऊपर उठकर संपूर्ण मानव जाति को एक समुच्चय मानता है। यह मानव- मानव के बीच के तमाम भेद-भाव को मिटाने पर जोर देता है। समाजवादी विचार ‘वेलफेयर स्टेट’ में विश्वास करता है। इसके लिए वे लोकतांत्रिक शासन प्रणाली का समर्थन करता है। भारत में समाजवाद को स्थापित करने वालों में आचार्य नरेन्द्र देव, डाॅ. राममनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण, चंद्रशेखर और कर्पूरी ठाकुर आदि का नाम अत्यंत सम्मान के साथ लिया जाता है। इन समाजवादियों ने समाजवाद का जो रूप निर्मित किया, उसमें समतामूलक समाज, लोकतांत्रिक राज्य तथा सर्वधर्म समभाव के साथ ही ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ पर बल दिया गया है।
यद्यपि भूमंडलीकरण की कई उपलब्धियाँ हों, परंतु इसकी बहुत सारी खामियाँ भी हैं। मानव समाज से बेपरवाह, वैयक्तिक स्वार्थों में निमग्न, अर्थ के पीछे सरपट भागते हुए मनुष्य के सामने समाजवाद कई आदर्शों का रखता है। विश्व समाजवाद की स्थापना, संयुक्त राष्ट्र संघ का पुनर्गठन, विश्व सरकार, विश्व विकास समिति, अंतरराष्ट्रीय जाति- प्रथा उन्मूलन, नि:शस्त्रीकरण जैसी विचारधाराएँ समाजवाद की देन है।
अतएव, हम कह सकते हैं कि भूमंडलीकरण के दौर में समाजवादी विचार और भी अधिक उपयोगी और प्रासंगिक हो गया है। यही एकमात्र मार्ग है, जिसपर चलकर हम भूमंडलीकरण की खामियों का निषेध करते हुए विश्वग्राम के स्वप्न को साकार कर सकते हैं।
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