भूमंडलीकरण और गांधीवाद

‘भूमंडलीकरण’ को अंग्रेजी में ‘ग्लोबलाइजेशन’ कहा जाता है, जिसके लिए ‘वैश्वीकरण’, ‘विश्ववाद’ तथा ‘बाजारवाद’ आदि शब्द का प्रयोग किया जाता है। भूमंडलीकरण का अर्थ है किसी भी वस्तु, व्यक्ति या विचार को स्थान विशेष से उठाकर समूचे विश्व में फैला देना। भूमंडलीकरण वस्तुत: वैश्विक उदारीकरण की उपज है, जिसने बाजारवाद को बढ़ावा दिया है। भूमंडलीकरण एक उत्कृष्ट शब्द है, जिसे बाजारवाद ने दूषित कर दिया है। बाजारवाद ने तमाम चीजों के प्रति नफे और नुकसान का भाव विकसित कर दिया है। अब प्रत्येक वस्तु या विचार को बाजार की कसौटी पर परखा जाता है। ऐसे में समाज और देश ही नहीं पूरी दुनिया के समक्ष अनेक तरह के संकट उपस्थित हो गये हैं। यथा- पश्चिमी संस्कृति का अंधानुकरण, आतंकवाद, साम्प्रदायिकता, प्रदूषण, बेरोजगारी, प्रकृति का विनाश, भूतापन आदि। आज इन वैश्विक संकटों से उबरने का एकमात्र उपाय है – ‘गांधीवाद’।             

‘गांधीवाद’ महात्मा गांधी के यथार्थपरक और प्रयोगात्मक जीवन का संचित अनुभव है। गांधीवाद अनेक भारतीय धर्मों और कर्मों का संचित उत्तमांश है। सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, अस्तेय और ब्रह्मचर्य किसी भी धर्म का उदात्त दर्शन हो सकता है। जो गांधीवाद का केन्द्रीय तत्त्व है। अच्छी बात यह है कि गांधी जी ने न केवल धर्म के क्षेत्र में अपने प्रयोगात्मक विचार प्रस्तुत किए, वरन् उन्होंने अनेक विषयों पर अपने सुन्दर विचार व्यक्त किये हैं। आज के भाग-दौड़ के इस युग में जहाँ अतिशय अर्थ संचय की होड़ में मानवीय संवेदना तार-तार हो गयी है, ऐसे में गांधी जी के अपरिग्रह के सिद्धांत कारगर सिद्ध हो सकते हैं। साथ ही हिंसावाद के इस युग में सविनय अवज्ञा और  असहयोग आंदोलन की महत्ता बढ़ गयी है।        

   ‘साम्प्रदायिकता’ की भावना का शमन गांधीवाद के ‘सर्वधर्मसमभाव’ तथा आतंकवाद जैसी समस्या से उबरने का मार्ग ‘वसुधैवकुटुम्बकम्’ हो सकता है। गांधीजी यांत्रिकीकरण के विरोधी थे। उन्हें पता था कि इसकी परिणति बेरोजगारी है। इसीलिए उन्होंने कुटीर उद्योग के विकास का मार्ग सुझाया था। आज विकास की इस अंधी दौड़ में प्रकृति का जबरदस्त दोहन शुरू हो गया है। जंगलों तथा पहाड़ों को नष्ट कर कंक्रीटों का जंगल खड़ा किया जा रहा है। और सड़क के किनारे पेड़ लगाए जा रहे हैं। हम यह भूल ही गये हैं कि यह जंगल का विकल्प नहीं हो सकता है। जंगल में जो जीवन का विकास होता है ,वह सड़क किनारे संभव नहीं हो सकता है।          

  ऐसी स्थिति में हम कह सकते हैं कि भूमंडलीकरण ने हमारे सामने अनेक प्रकार की समस्याओं का अंबार खड़ा कर दिया है, जिससे जीवन में अनेक तरह की अशांति का आविर्भाव हुआ है। इन संकटों से मुक्ति का एकमात्र मार्ग है- गांधीवाद। डाॅ. उमेश कुमार शर्मा युवा रचनाकार                                                

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *