बैंक अधिकारी विनय वर्मा को आज का सूरज कुछ नया लग रहा था। आज वृक्ष कुछ अधिक हरे लग रहे थे। चिड़ियों की चहचहाहट भी कितना हृदय- स्पर्शी प्रतीत रहा था। प्रकृति अधिक रम्य और नीरव…..! क्यों न हो! यह 2024 का सूरज है। उन्हें चारों ओर सबकुछ नया ही नजर आ रहा था। नया साल….नयी नौकरी… नयी पत्नी…..किराये का नया मकान….नया सोफा….नया बेड…नयी आलमारी…..नये गमले और गमले में खिले गुलाब भी नयेपन से झूम रहे थे….! मोबाइल पर मध्यरात्रि से ही नव -वर्ष की बधाईयाँ और शुभकामनाएँ मिल रही थीं। प्रात: भ्रमण से लौटते ही उसने वर्ष-2024 वाली डायरी निकाली और श्री गणेशाय नम: लिखकर नव वर्ष की योजनाएँ बनाना आरंभ कर दिया –
– आज से झूठ बोलना बंद।
– आज से किसी पर गुस्सा करना बंद।
– आज से सबको सम्मान देना शुरु।
– आज से घूसखोरी बंद…..।
– आज से अपने दायित्वों और कर्तव्यों के प्रति लापरवाही बंद। – आज से……
वह अपनी योजनाएँ बनाने में डूबता ही जा रहा था कि अनाथाश्रम से माँ का फोन आने लगा। माँ शायद उन्हें नव -वर्ष की शुभकामनाएँ देना चाह रही थी!
विनय ने फोन काट दिया।
मोबाइल फिर बज उठा।
विनय ने फिर काट दिया।
मोबाइल फिर बजना शुरु।
क्रोधातुर होकर उसने इस बार फोन उठाया….’यह बुढ़िया बिना डाँट खाये मानेगी नहीं…….’
“आप विनय वर्मा जी बोल रहे हैं न?” माँ के नंबर से किसी अन्य औरत की आवाज सुनाई दी।
-”जी! मैं विनय……..आप?”
-“मैं अनाथाश्रम से बोल रही हूँ। आपकी माता जी इस दुनिया में नहीं रही!”
– माता जी का क्रिया-कर्म ऐसा, जैसा गाँव में किसी ने न किया हो! आज से तैयारी शुरु…….
और इस तरह विनय ने अंतिम लाइन लिखकर डायरी को बंद कर दिया….।