प्रिय पाठकों!
लोग अक्सर पूछते हैं कि आज दुनिया कहाँ से कहाँ चली गयी है! लोग चाँद और मंगल ग्रह पर बस रहे हैं। वैज्ञानिक आविष्कारों ने चमत्कृत कर दिया है। विज्ञान ने संसार के सारे रहस्यों का उद्भेदन कर दिया है। इस जमाने में लोग अंग्रेजी पढ़कर बड़ी-बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियों में नौकरी कर रहे हैं। पैसा कमा रहे हैं! नाम कमा रहे हैं। ऐसे में हिन्दी पढ़े-लिखे को कौन पूछता है?……..जब काम ही नहीं मिलेगा तो लोग हिन्दी पढ़कर क्या करेंगे? सच पूछा जाय तो यह सवाल ही गलत है। यह कहना कि अंग्रेजी पढ़कर वे लोग सफल हो गये, गलत है। यह कहा जा सकता है कि वे अंग्रेजी माध्यम से पढ़कर सफल हुए हैं। यहाँ भाषा केवल माध्यम है। ज्ञान का ईजाद दुनिया की तमाम अलग-अगल भाषाओं में होती है। अंग्रेजी में बस उसका अनुवाद होकर आता है, जिसे हम भूलवश अंग्रेजी उत्पादित ज्ञान समझ लेते हैं। भाषा केवल ज्ञान के प्रसार का साधन है। ज्ञान किसी भी भाषा की बपौती नहीं है। आज हम उत्तर-आधुनिकतावादी युग में जी रहे हैं, जो भूमंडलीकरण और बाजारवाद के मकड़जाल में उलझा हुआ है। आज किसी भी व्यक्ति, वस्तु, विचार या सिद्धांत की महत्ता का आकलन बाजार के परिप्रेक्ष्य में करना पड़ता है। यह मजबूरी भी है और जरूरी भी। “जो बिकता है, वही टिकता है” यह उत्तर-आधुनिक समाज का दर्शन है। इसलिए सभी चीजों को नफे और नुकसान की कसौटी पर परखा जाता है। अच्छी बात यह है कि बाजारवाद ने हरेक चीज को उत्पाद और हरेक व्यक्ति को उत्पादक या उपभोक्ता बना दिया है। सीमाहीन मुक्त बाजार के वैश्विक प्रसार के इस दौर में भारत दुनियाभर के लिए एक चमचमाता हुआ बाजार है। देश की बड़ी आबादी वस्तुत: उपभोक्ता है। बाजार ने हमें एक साथ उत्पादक तथा उपभोक्ता दोनों बना दिया है। जैसे कोई कपड़ा बुनता है और बेचता है तो वह इस दृष्टि से एक उत्पादक है,लेकिन वह अपने परिवार के लिए अनाज या दवा खरीदता है तो वहाँ वही व्यक्ति उपभोक्ता हो जाता है। इस तरह से देखें तो दुनिया के सामने भारत एक शानदार बाजार हैं, जिसमें उत्पादक चाहे जो हो या जितना बड़ा हो, खरीदार आम जनता है, जिसकी भाषा हिन्दी है। अतएव, इस व्यापक बाजार में वही अपना उत्पाद बेच सकता है, जिसकी भाषा हिन्दी होगी। भारत की 65 प्रतिशत आबादी की भाषा हिन्दी है, इसलिए यहाँ के बाजार में हिन्दी माध्यम से ही संवाद करने वाला टिक सकता है। इतिहास साक्षी है कि जब अंग्रजों को यहाँ शासन करना था, तब उन्होंने भाषा की शक्ति को परखकर कलकत्ता में ‘फोर्ट विलियम काॅलेज'(1800 ई.) की स्थापना की थी, जिसमें अधिकारियों को हिन्दी भाषा का ज्ञान कराया जा रहा था। भारत एक ऐसा देश है, जिसमें भीख भी मांगना हो तो हिन्दी माध्यम से ही मांग सकते हैं। हिन्दी विश्व की तीसरी सबसे बड़ी भाषा है। भारत के अतिरिक्त दक्षिण अमेरिका, दक्षिण अफ्रिका, मारीशस, वियतनाम, फिजी, गियाना, त्रिनिदाद, टोवेको में हिन्दी फैल चुकी है। आज हिन्दी के प्रभाव को देखकर ही तमाम विदेशी टीवी चैनलों ने हिन्दी में चौबीसों घंटे सामाचार प्रसारित करना आरंभ कर दिया है। साथ ही दुनियाभर के लेखकों ने अपनी रचनाओं का हिन्दी में अनुवाद करवा कर पाठकों में प्रचार-प्रसार करना शुरु कर दिया है। तमाम हॉलीवुड फिल्में हिन्दी में ‘डव’ होकर आने लगी हैं। यह सब हिन्दी की अपनी शक्ति है। उसे विकसित होने के लिए किसी सत्ता की बैसाखी नहीं चाहिए। यह अलग सवाल है कि हिन्दी के संवर्द्धन के नाम पर नेतागण सियासत की रोटियाँ सेकने से बाज नहीं आते हैं। जिस हिन्दी ने स्वाधीनता-संग्राम के दौरान संपूर्ण राष्ट्र को एकता के सूत्र में बांधे रखा और देश को आजादी दिलायी, वही हिन्दी आज सत्तासीनों की दृष्टि में किसी काम की नहीं है। ये नेतागण कभी गाय के नाम पर हो-हल्ला करेंगे तो कभी मंदिर और मस्जिद के नाम पर। जब भी आम आदमी किसी मुद्दे की बात करना चाहे तो ये जोर से ढोल पीटने लगते हैं -“भाईयो! हिन्दुत्व खतरे में है!” 70% प्रतिशत से अधिक आबादी वाला हिन्दुत्व किस खतरे में हैं, ये कभी नहीं बताते। बहरहाल उनकी दृष्टि में हिन्दी खतरे में नहीं है! मैं यह विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि हिन्दी खतरे में नहीं है! तमाम खतरों का सामना करती हुई वह अपनी शक्ति और सामर्थ्य से आगे बढ़ रही है। आज यह अपनी ताकत से विश्वभाषा के मार्ग पर प्रशस्त हो रही है। हिन्दी के इस विराट स्वरूप की एक झलक के बाद हम बात करेंगे कि कैसे हिन्दी काम भी देती है और नाम भी। हिन्दी मानविकी संकाय की सर्वाधिक लोकप्रिय, ज्ञानवर्धक और रोजगारोन्मुख भाषा तथा विषय है। यह केवल एक भाषा नहीं है, वरन् यह भाषा समूह है। हिन्दी भारतीयता का पर्याय है। इसमें रोजगार के अनेक आयाम हैं, जिसे निम्नलिखित बिन्दुओं में देखा जा सकता है :-
(1) शिक्षा का क्षेत्र :-
शिक्षा के क्षेत्र में हिन्दी की सर्वाधिक महत्ता है। उच्च विद्यालय से लेकर विश्वविद्यालय तक में सर्वत्र हिन्दी का बोलबाला है। सर्वत्र हिन्दी शिक्षक के पद निर्धारित होते हैं। बात पहले विद्यालय स्तर पर की जाय तो स्कूल सरकारी हो या प्राइवेट, उत्तर भारतीय स्कूल हो या दक्षिण भारतीय , सबमें हिन्दी शिक्षकों की नियुक्ति होती है। अतएव, हिन्दी विषय में स्नातक या स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के पश्चात् बीएड तथा एम.एड करने के बाद टीईटी/एसटीईटी की परीक्षा उत्तीर्ण कर सभी तरह के स्कूलों में शिक्षक बनना सहज है। और यह शानदार कैरियर है। महाविद्यालय तथा विश्वविद्यालय में शिक्षक बनने हेतु एम.ए. की उत्तीर्णता के बाद नेट/जेआरएफ की परीक्षा पास होकरना तथा पी-एच.डी. की उपाधि को प्राप्त करना अनिवार्य कर दिया गया है। इन डिग्रियों के पश्चात् साक्षात्कार के माध्यम से सहायक प्राध्यापक के रूप में नियुक्ति होती है। यह मजेदार बात यह है कि प्रत्येक महाविद्यालय में चाहे किसी अन्य विषय का शिक्षक हो या न हो, पर तीन से चार हिन्दी शिक्षक अवश्य होते हैं। चूँकि सभी संकायों के विद्यार्थी हिन्दी अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ते हैं। साथ ही सभी विश्वविद्यालयों में हिन्दी विभाग होता है, जिसमें 6 से लेकर करीब 34-35 शिक्षक नियुक्त किए जाते हैं। इसलिए शिक्षा का क्षेत्र अत्यंत उर्वर है। अतएव, हिन्दी विषय में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्र-छात्राओं के लिए यह सर्वाधिक आकर्षण कैरियर है। सच पूछा जाय तो एक कुशल शिक्षक के रूप में जो शांति, सम्मान और सुख है,वह अन्यत्र कहाँ?
(2) प्रशासनिक क्षेत्र :
हिन्दी विषय में स्नातक उत्तीर्ण छात्र-छात्राएँ एक सामान्य प्रतियोगी परीक्षा उत्तीर्ण कर भारत सरकार के विविध विभागों में राजभाषा अधिकारी के रूप में नियुक्त हो सकते हैं। साथ ही विभिन्न लोकसेवा आयोग की परीक्षा में एक विषय के रूप में हिन्दी को रखकर सफलता अर्जित कर सकते हैं। इसका एक महत्वपूर्ण कारण है कि सही तरीके से हिन्दी पढ़कर सामाजिक विज्ञान के किसी भी विषय को भलीभाँति समझा जा सकता है। साथ ही हिन्दी छात्र-छात्राओं का लेखकीय कौशल भी अपेक्षाकृत बेहतर होता है, जिससे सिविल सेवा जैसी बड़ी परीक्षाओं में सफलता मिल सकती है। अतएव, प्रशासनिक सेवा में चयनित होने के लिए भी हिन्दी बेहतर विकल्प है।
(3) संचार क्षेत्र :
संचार के दो क्षेत्र हैं- प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रानिक मीडिया। प्रिंट मीडिया के तहत अखबार तथा पत्र-पत्रिकाएँ आती हैं। इस क्षेत्र में अच्छी हिन्दी लिखने वाले की काफी मांग रहती है। समाचार लेखन से लेकर प्रूफरीडिंग तक का कार्य हिन्दी बेहतर कर सकते हैं। अत: हिन्दी के वैसे छात्राएँ जिसने हिन्दी विषय से स्नातक कर लिया हो तथा अच्छी हिन्दी लिखना जानता हो और इस क्षेत्र में काम करना चाहते हों, वे एकाध वर्ष का सर्टिफिकेट कोर्स करके प्रिंट मीडिया के क्षेत्र में अपना कैरियर बनाकर नाम और पैसा कमा सकते हैं। आजकल दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से इस तरह का कोर्स कराया जाता है। इलेक्ट्रानिक मीडिया के दो रूप हैं-एक श्रव्य तथा दूसरा दृश्य-श्रव्य। श्रव्य माध्यम में रेडियो सबसे लोकप्रिय है तथा दृश्य-श्रव्य माध्यम में टेलीविजन। मीडिया के इन दोनों रूपों में अच्छी हिन्दी लिखने वाले, पढ़ने वाले तथा बोलने वाले की मांग सदैव रहती है। जबसे इस क्षेत्र में विज्ञापन का बाजार सजने लगा है, तबसे यह क्षेत्र काफी कमाऊ हो गया है। साथ ही इस क्षेत्र में काम करके पैसा के साथ नाम कमाया जा सकता है।
(4) लेखन का क्षेत्र :
हिन्दी विषय के छात्र-छात्राएँ साहित्यिक लेखन को भी अपना कैरियर बना सकते हैं। आजकल सृजनात्मक लेखन का अपना अलग ही महत्त्व है। सृजनात्मक लेखन का प्रयोग पटकथा लेखन एवं विज्ञापन लेखन आदि में किया जा सकता है। इस तरह के लेखन में काफी पैसा और सम्मान है। इस तरह के लेखन के लिए अनेक तरह के कोर्स भी कराये जाते हैं। अतएव, लेखन में जिनकी रुचि हो, वे इस क्षेत्र में आगे बढ़कर अपना कैरियर बना सकते हैं। आज के दौर में साहित्यिक लेखन करके भी अर्थोपार्जन किया जा सकता है। अगर आप में बड़े जन समुदाय की मानसिकता की परख है तथा आप समय की माँग को समझते हैं तो यह क्षेत्र पैसा और सम्मान दिला सकता है। एक समय था जब प्रकाशन की असुविधा या उपेक्षा भाव के कारण लोगों के भीतर की सृजनात्मकता मर जाती थी, पर आज ऐसा नहीं है। डिजिटलाईजेशन के इस युग में हर लेखक स्वयं एक प्रकाशक भी है। आज के अनेक लेखक सोशल मीडिया के माध्यम से पाठक के बड़े वर्ग से जुड़कर अपनी पहचान बना रहे हैं। यह अलग सवाल है कि सोशल साइट्स ने जितनी सुविधाएँ दी गयी हैं, बदले में लेखन एक चुनौतीपूर्ण कार्य भी हो गया है। चूँकि रचनाकारों की भीड़ में वही सफल हो सकते हैं, जिनमें विशिष्ट प्रतिभा हो, रचनात्मकता का उत्कर्ष हो, भाषा पर पूरा अधिकार हो। बहरहाल, लेखन का क्षेत्र भी काफी लोकप्रिय कैरियर है आज के युग में।
(5) अनुवाद का क्षेत्र :
हिन्दी से अंग्रेजी तथा अंग्रेज़ी से हिन्दी में अनुवाद करके भी एक अनुवादक के रूप में कैरियर बनाया जा सकता है। आज के दौर में प्रत्येक कार्यक्रम चाहे वह सरकारी हो या गैर-सरकारी कुछ अनुवादकों की नियुक्ति करता है। एक ठीक-ठीक अनुवादक आराम से पच्चीस से तीस हजार कमा सकता है। परंतु ध्यान रहे कि अनुवादक के रूप में कैरियर बनाने के लिए हिन्दी के साथ अंग्रेजी का ज्ञान भी आवश्यक माना जाता है। कुल मिलाकर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि हिन्दी का समुचित ज्ञान हमें काम भी दिला सकता है और नाम भी! इस विषय की पढ़कर हमें दब्बूपन का शिकार नहीं होना चाहिए । अगर हिन्दी पढ़कर भी हमें काम नहीं मिलता है तो हमें समझना चाहिए कि हमने ठीक से हिन्दी को पढ़ा और समझा ही नहीं है।