एक महिला चिकित्सक के साथ सामूहिक दुष्कर्म तथा उसे जिन्दा जला देने के खिलाफ़ पूरा देश उबल पड़ा। क्या बूढ़े, क्या जवान सभी सड़क पर उतर आये। जगह-जगह ‘कैंडिल मार्च’ शुरू हो गया। नारे लगने लगे- “अपराधी को फाँसी दो! फाँसी दो! फाँसी दो! नारी कोई खिलौना नहीं! खिलौना नहीं…..” लोगों और खासकर युवाओं में इस तरह की सजगता देखकर कनक मन ही मन खुश हो रही थी। अब किसी लड़की के साथ ऐसा नहीं होगा। कैंडिल मार्च में भाग लेने से उनके भीतर की आग शांत हो रही थी। आज अपने काॅलेज के विद्यार्थियों का वह स्वयं प्रतिनिधित्व कर रही थी। सूरज ढलने के बाद सभी छात्र-छात्राएँ अपने-अपने घर को चले। आॅटो वाले हड़ताल पर थे, इसलिए कनक को भी तीन किलोमीटर की दूरी पैदल ही तय करनी थी। संयोग से वह उधर ही जा रही थी, जिधर तीन-चार लड़के को जाना था। सभी के हाथ में बुझी हुई मोमबत्तियाँ थीं। वह बेखौफ़ साथ चलने लगी। अब वे मुख्य सड़क को छोड़कर गली में चल रहे थे कि अचानक कनक को किसी ने पीछे से छुआ। वह चौंककर पीछे मुड़ी- “क्या है? क्या कर रहे हो।” एक लड़के को उसने डपटा। “कुछ नहीं मेरी जान, तुम पर दिल आ गया।” दो लड़के ने एक साथ कहा। कनक सन्न रह गयी। कुत्ते का दुम, कितना भी मालिश कर लो, सीधा नहीं हो सकता। “चुपचाप चलते बनो, नहीं तो चिल्ला-चिल्ला लोगों को बुलाऊंगी। और फिर सोच लो…..।” कनक ने अपना रूख कड़ा किया। “चिल्लाओं न मेरी जान! देखते हैं तुम्हें कौन बचाने आता है? चुपचाप हमें खुश कर दे। और कोई चारा नहीं है।” कनक काँप गयी। वह चारों तरफ से घिर चुकी थी। गली में वीरानगी पसरी थी। चिल्लाने से कोई लाभ न मिलने वाला था। वह सरपट भागने लगी। वे सभी पीछे दोड़ने लगे……..। कनक गिर पड़ी…..फिर उठी….भागने लगी…भागती रही…..भागती रही…….पकड़ी गयी। वह फिर गिरी…उठ गयी……भागती रही….भागती रही…भाग गयी…….। सुबह झाड़ियों में एक लाश मिली। खून से लथपथ। वह कोई और नहीं कनक थी। आसपास कई अधजली मोमबत्तियाँ बिखरी पड़ी थीं,जिन्हें उठाकर फिर शुरू हुआ कैंडिल मार्च..अनवरत….अनवरत…..! *****************************************
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