“यह संसार नश्वर है। ‘दृश्य जगत’ माया का प्रसार है। सारे नाते -रिश्ते केवल भ्रम हैं। यहाँ कोई किसी का नहीं है…..!”          महंथ रामतीर्थ दास का यह प्रवचन सुनकर कई लोग विरक्त हो गये!         

कई संन्यासी हो गये।         

कई गृह-त्यागी…….।         

परंतु रामतीर्थ दास दान में मिली हुई धोती की कीमत आँकते हुए परेशान हो रहे थे-‘आजकल भक्तों को भी किफायत सूझने लगी है।’                                     

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