सुबह का अर्घ्य

सोमू की छुट्टी का आवेदन अभी स्वीकृत भी नहीं हुआ था, पर वह गाँव जाने के जोश में पूरी तैयारी कर बैठा। माँ के लिए एक जोड़ी साड़ी, पिताजी के लिए एक जोड़ धोती और बंडी, बहन के लिए फ्राॅक- सूट और दुपट्टा, भाई के लिए जिंस, सर्ट और ब्लेज़र, तीन प्रकार की मिठाईयाँ  खरीद कर वह पैक कर चुका था।           इस बार छठ में जाना है तो जाना है। उसके मन की दमित इच्छाओं का विस्फोट हो चुका था! तब वह मात्र तीन साल का रहा होगा। पिताजी ने  पीठ पर  करीब उसके आधे वज़न का बस्ता लाद कर डी.ए.वी. के जूनियर आवासीय  ब्रांच में नामांकन करवा दिया। तब से क्या होली क्या दिवाली…….. एल.के.जी., यू.के.जी., पहली,दूसरी तीसरी……… दसवीं….. बारहवीं  फिर बी.आई.टी. आसनसोल,(बंगाल) में चार साल की रट्टामार पढ़ाई और फिर कैम्पस सिलेक्शन….. टाटा टिस्को कंपनी, जमशेदपुर में नौकरी। जिंदगी, साला झंड हो गया! अपने लिए तो एक क्षण भी न जिया वह!             

सोमू कम्प्यूटर पर जल्दी-जल्दी हाथ चलाने लगा। कुछ जरूरी प्रोजेक्ट डील करना था। नाईट सिफ्ट  में उनकी ड्यूटी थी इस सप्ताह। रात से सुबह हो गया.. काम अब भी बहुत बाँकी था… फिर शाम से शुरू…..             

शाम के सात बजे थे।  वह गाँव पहुँचा। भाई स्टेशन पर लेने आया था। नौकरी लगने के बाद वह पहली बार घर आया था। शाम के अर्घ्य में शामिल होने से चूक गया, लेकिन सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने की उत्सुकता में उसे ठीक से नींद नहीं आयी। सुबह जल्दी से तैयार होकर वह  डाले के साथ ही कोशी घाट की ओर चल पड़ा। माँ लाल साड़ी पहन कर नाक तक सिंदूर लगायी हुई हाथ में नारियल लिए हुए कमर भर   पानी में खड़ी थी। पिताजी नयी धोती, कुर्ता और नारंगी रंग की बंडी डाले हुए लोगों से बातचीत कर रहे थे। भाई और बहन भी नये कपड़े पहनकर रोब के साथ पटाखे छोड़ रहे थे।         

 सोमू ने आज पहली बार उगते हुए सूरज को, बहती हुई कोशी नदी की धारा को, चहकती हुई चिड़ियों को, फूलों पर मंडराते हुए भँवरे को,उमंग में डूबे हुए बच्चे को, धान की झुकी हुई बालियों को तथा गेहूँ की कोमल डिब्भियों को देखा था। उसे लगा कि जैसे अब तक उनकी जिंदगी अधूरी थी।                         

  लेकिन वह सूर्य को अर्घ्य देने के लिए दूध का लोटा पकड़ा ही था कि मैनेजर ने उनके कंधे को झकझोरते हुए कहा – “यार तुम यहाँ काम करोगे या खर्राटे ले रहे हो।”         

“सौरी सर! अभी ही थोड़ी- सी आँख लग गई।”

सोमू आँख मलते हुए बाहर आया तो सूरज काफी ऊपर चढ़ आया था। लोग अपने परिवार के साथ घाट से अंकुरी, ठेकुआ, केले और मिठाईयाँ खाते हुए वापस आ रहे थे।       

 सोमू ने सूर्य के सम्मुख माफी के लिए एक बार फ़िर से अपना दोनों हाथ उठा दिया।

*******************************

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *