राकेश ने अभी गाड़ी स्टार्ट किया ही था कि फिर से फोन बज उठा -“तुमने हेल्मेट लगाया या नहीं….?”
“हाँ, यार लगा लिया। लंच भी ले लिया….पानी भी पी लिया….और बोलो!”
“ऐसे क्यों बोलते हो! पूछकर गुनाह किया क्या….नहीं पूछूँगी कल से!” राकेश की बातों से आहत हो गई कुमकुम।
“ओह! तुम भी न, तुरत रूठ ही जाती हो….नाक पर ही गुस्सा रहता है! इसीलिए तो तुम्हें नकचढ़ी कहता हूँ….तुम नहीं पूछेगी तो कौन पूछेगी!” राकेश ने पुचकार कर मना लिया उसे।
“नहीं करती हूँ गुस्सा….अपना ख्याल रखा करो…मुझे तुम्हारी चिंता होती है। इसीलिए पूछती हूँ! आज फिर उनसे लड़े हो क्या?”
“जी! लाख कोशिश करता हूँ कि कुछ न बोलूँ, पर तुम्हीं बताओ, कितना सह सकता है कोई! उनका बस चले तो साँस लेने पर भी पाबंदी लगा दे!” मन ही मन रो पड़ा राकेश।
“ओह! क्या कहूँ मैं! कुछ बोल भी नहीं सकती! ऐसा कब तक चलेगा….!” सोचती रह गई कुमकुम। फिर बोली- “ठीक है अपना ख्याल खुद रखा करो। सब ठीक हो जाएगा।”
“खाक ठीक होगा!”
“धैर्य रखो!”
“तुम हो न ख्याल रखने के लिए……!”
“हाँ, मैं तो हूँ ही। मैं कहाँ जाऊंगी! फिर भी….
“ठीक है डियर अब निकलता हूँ। देर हो जाएगी।”
“ओके! गाड़ी लिमिट स्पीड में चलाना और पहुँच कर बता देना। रखती हूँ फिर।”
-“ठीक है मेरी नकचढ़ी डार्लिंग….।” फोन काटते हुए हौले से कहा राकेश ने।
कुमकुम का प्रेम कितना नि:स्वार्थ है! कितना निर्लिप्त! कितना सात्विक! उसे कुछ नहीं चाहिए! फिर भी कितना ख्याल रखती है वह! उसने कभी सोचा भी नहीं था कि कोई उसे इतना प्यार कर सकती है या इतना भी प्यार किया जा सकता है!
पत्नी से कटे- कटे रहने के बाद तो वह भूल ही गया था कि जीवन में फिर से हरयाली आएगी। इस वीरान पतझड़ में फिर से बसंत आएगा। फूल खिलेंगे…. मन के बागों में, जहाँ काँटे ही काँटे उग आए हैं।
पी-एच.डी. करने के बाद बेरोजगारी से जूझती हुई जिंदगी यूँ ही बोझ बन गई थी। ऊपर से पत्नी के रोज-रोज के ताने…
– तुम तो किसी काम के नहीं हो….नालायक!
– तुमसे अच्छा रिक्सा- ठेला चलाने वाला है, जो अपनी पत्नी और बच्चे के शौख पूरे कर लेते हैं।
– आज मास्टरी कर लिए होते तो यह नौबत न आती…!
– बड़े विद्वान बने फिरते थे…..घुसर गई……!
– मेरी तो किस्मत फूटी थी कि तुम्हारे साथ…!
अपमान और उपेक्षा को पीते- पीते पत्थर हो गया था राकेश। अब कोई फर्क न पड़ता।
राकेश की हालत अब ऐसी हो गई थी कि वह जोर से बोल भी नहीं सकता! जोर से बोले तो रजनी डाॅट पड़ती –
– धीरे से नहीं बोल सकते….? चमाईन ने मुँँह में हाथ की जगह पैर घुसा दिया था क्या…..
– अब खाली बोलना ही तो रह गया है!
खुलकर हँसे राकेश,तो वह बोलती –
– घर में काॅमेडी सो चल रहा है क्या…..!
किसी को कोई सलाह देने लगे तो कहती –
– दूसरों को सलाह देने में खूब फुराता है। अपनी जिंदगी तो झंड है और चले……
– रात को खर्राटे क्यों मारते हो….
– अरे, ऐसे कोई गधे की तरह खांसता है क्या….
– खा कैसे रहा है! बैल की तरह….
राकेश और रजनी के शीत-युद्ध में अब एकतरफा रजनी ही वार करती थी। वारों को सहते हुए राकेश बस जिए जा रहा था। क्या हो जाता है समय के साथ रिश्ते को! किसकी नजर लग जाती है! कभी इनके प्रेम से जलते थे लोग। दोनों के प्रेम ने घर वाले को झुकने को मज़बूत कर दिया। जिये -मरेंगे साथ……..
लेकिन चार सालों में ही हर क्षण मरते हैं ये… इतनी ऊब, इतना अलगाव, इतनी टूटन…..
“ग्यारह बज रहे हैं, तुमने काॅलेज पहुँचकर बताया क्यों नहीं….?” कुमकुम से फिर डाॅट लगी उसे।
वह बीस-बाईस किलोमीटर का रास्ता कब नाप गया। कुछ पता ही न चला। आते ही उनके वर्ग का समय हो चुका था। बच्चे इंतजार कर रहे थे। आज उन्हें एम. ए. के प्रथम छमाही वर्ग में ‘नागमती वियोग-खंड’ पढ़ाना था।
“साॅरी डियर!आते ही प्रिंसिपल साहब ने बुला लिया।” राकेश ने वर्ग से बाहर आकर सफाई दे डाली, “अभी वर्ग में हूँ। करता हूँ फिर…..”
कुमकुम ने गुस्साकर तुरंत फोन काट दिया।
राकेश मजबूर। उनके पास अभी मनाने का समय न था। वर्ग के बच्चे उसे आँखें फारकर देखे जा रहे थे।
कुमकुम लाख रूठ जाए, गुस्सा करे, फोन काट दे, लेेेकिन वह राकेश से नि:स्वार्थ प्रेम करती थी।
राकेश के जीवन में कुमकुम का प्रवेश किसी रहस्य से कम न था। पति से अलग होने के बाद कुमकुम अपने लिए कुछ करना चाह रही थी। वह आत्मनिर्भर होना चाह रही थी। इसके लिए उन्हें राकेश की जरूरत थी। उन्हें आज भी विश्वास था कि राकेश उनके लिए जरूर कुछ कर सकता है!
इधर पत्नी के साथ रहकर भी अकेलेपन को भोगता हुआ राकेश न जाने किस अज्ञात मित्र की खोज में था। जो उसे समझ सके! जो उसे समर्पित प्रेम दे! जो केवल उसी का हो…। उसी समय इस्टाग्राम पर कुमकुम का मिल जाना उनके लिए उसी प्रकार सुखकर था जैसे कोलम्बस के लिए अमेरिका को खोज निकालना। और वास्कोडिगामा की भारत खोज!
फिर तो बात बात में बात हो गई।
वह पूरे काॅलेज में नकचढ़ी लड़की के रूप में ख्यात थी, पर थी ही इतनी सुन्दर कि लड़के खतरे मोल लेने से चूकते न थे। यह अलग सवाल है कि वहाँ किसी की दाल न गल पाई…
एम.ए. की पढ़ाई पूरी होते ही झटपट कुमकुम का विवाह हुआ। विवाह एक ऐसे पुरुष से, जिसने उसके भीतर कभी झाँककर न देखा। उसके लिए वह केवल एक सुन्दर स्त्री देह थी। इसलिए देह- तृप्ति के बाद सारा सम्मोहन खतम। कपड़े और गहने बेचते -बेचते, वह एक दिन इस देह की भी कीमत आंकने लगा। वासना की सागर में डूबा हुआ वह आदमी अब शराब में डूबने का आदी हो गया।
कुमकुम को विश्वास था कि वह अपने त्याग, समर्पण और प्रेम के बल पर हैवान को इन्सान बना लेगी। इस इंतजार में वह उनके साथ चार साल काट गयी। परंतु वह अंतत: हार गई।
यह काम पत्थर पर डूब पैदा करने जैसा था। एक बार राकेश ने उनसे पूछा- “तुम्हें जब पता चल गया कि शराब और शबाब उसकी कमजोरी है, फिर भी उनके साथ चार साल…..!”
“तुम भी तो चार वर्षों से झेल रहे हो, एक ऐसी स्त्री को जो तुमसे प्यार नहीं करती….” कुमकुम ने उसे बीच में ही रोक दिया, “अच्छे लोगों की यही खासियत है राकेश, कि वह दूसरों को सुधरने का पूरा वक्त देता है। यही तुमने भी किया और मैंने भी…..!”
“क्या करूँ, तुम मिली होती तो……!” राकेश ने कुमकुम की आँखों में देखा।
“कैसे मिलती…..तुमने खतरा मोल लेने में देर कर दिया न!”
“मुझे क्या पता था यार कि नकचढ़ी लड़की इतनी अच्छी होगी! नहीं तो उसी समय…..!”
राकेश ने कौन- सा झूठ बोला था। अब तक कुमकुम उसे ‘हंसावली’ लग रही थी। प्रेमकाव्य परंपरा की शुरुआत हंसावली से ही होती है। वहाँ राजकुमारी हंसावली और राजकुमार की प्रेम कहानी है। हंसावली से प्रेम निवेदन करना खतरे से खाली न था। वह हरेक महीने के दोनों पक्षों (कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष) में पाँच- पाँच पुरुषों की हत्या करती थी। फिर भी फना होने के लिए राजकुमार आ ही गया……
राजकुमार की भाँति राकेश भी आखिरकार डरते- डरते कुमकुम को ‘आई लव यू’ बोल दिया। मोबाइल पर बोलकर कहने की हिम्मत तो नहीं हुई ,लेेेकिन वाट्सप पर एक लंबी भूमिका बाद उसे न जाने कहाँ से हिम्मत आ गई।
मैसेज पढ़ लेने के बाद कुमकुम ने कुछ देर तक कोई जवाब न दिया।
पाँच दिसंबर की उस सर्द रात में पसीने छूट गये राकेश के। कान से धुआँ निकलने लगा। उसकी धमनियों में रक्त जमता जा रहा था! उसके सामने कभी क्रोध से उबलते हुए कुमकुम के चेहरे आते, तो कभी हंसावली के……
कुमकुम कह रही है-”तुम्हारी इतनी हिम्मत….तूँ मुझे ‘आई लव यू’ बोलेगा। उतारती हूँ प्यार का भूत…चार दिन अच्छे से बात क्या कर ली! आ गई औकात सामने…तुम मर्दों की यही सबसे बड़ी समस्या है। हर लड़की को प्रेमिका समझने की भूल कर बैठते हो। कुत्ते कमीने कहीं के….”
‘कुत्ते – कमीने’ कहकर ही उसने अबतक कई लड़कों की पिटाई कर चुकी थी। लेेेकिन लड़के थे कि उसके सुन्दर हाथों से पिटकर भी बाज नहीं आते। एम. ए. की कक्षा में धीरज का भूत उतारते उसने देखा था……कैसे चटाचट उसके गाल पर तमाचे पड़े थे।
“साॅरी….आपको बुरा लगा क्या….!” राकेश ने डरते हुए दूसरा मैसेज किया, “रियली साॅरी…..अब कभी ऐसी गलती न होगी….!”
“इतना प्यार से बोलोगे तो, गुस्सा किसे आएगा!”
“ओ यार! मैं तो डर ही गया था….!” राकेश के जान में जान आयी।
“एक बार फिर से बोलो न!”
“आई..लव….यू…..डियर।” फिर से बोला राजेश ने।
सुनकर लाज से नहा गई कुमकुम,”ओह! डियर भी!”
पहली बार इस कदर लजाई थी वह। अब तक उन्हें ऐसी बातों पर क्रोध ही आया था। चूँकि किसी ने इतना प्यार से बोला नहीं शायद।
आज परिवार अदालत में अंतिम फैसला हो गया।
रजनी और प्रोफेसर राकेश वर्मा सदा के लिए अलग।
छह साल के रिश्ते टूटने में छह मिनट भी न लगे होंगे!
रजनी बहुत खुश होकर अदालत से बाहर निकली।
लेेेकिन बाहर निकलते हुए राकेश के कदम लड़खड़ा रहे थे। आज उसके पास सबकुछ था। नौकरी, पैसा, प्रतिष्ठा….. फिर भी कुछ नहीं था! उनकी आँखें बरस रही थीं…..रजनी से जुड़ी हुई सारी सुखकर स्मृतियाँ उन्हें रुला रही थी!
“मेरी कसम है, रोना मत! कोई अच्छी लड़की देखकर विवाह कर लेना!” कुमकुम उसके सामने खड़ी थी।
“अब फिर विवाह…..!” फूट पड़ा राकेश।
“अभी क्या हुआ है! विवाह न करोगे तो कौन रखेगा तुम्हारा ख्याल….!”
“उसके लिए है न मेरी नकचढ़ी!” आँसू पोछकर कुमकुम को गले से लगा लिया राकेश ने!
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