उस दिन मेरा मन कुछ अशांत था! मैं अपने वयोवृद्ध गुरुदेव डाॅ. वर्मा के घर पहुँचा कि यहाँ कुछ शांति मिले! गुरुदेव मुझे देखकर प्रसन्न हुए। शायद कुछ समय के लिए उनका अकेलापन दूर हो जाएगा। उन्होंने आशीष देते हुए मुझसे पूछा,”आजकल क्या सब चल रहा है! पढ़ाई – लिखाई हो रही है अच्छे से!”
-“जी गुरुदेव! सब ठीक चल रहा है। पढ़ाई- लिखाई हो रही है।” मैंने बिना कुछ सोचे जवाब दिया।
-“क्या नया लिख रहे हो अभी?”
-“एक उपन्यास पर काम कर रहा हूँ गुरुदेव! उच्च शिक्षा में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर करना चाहता हूँ।”
-“बहुत अच्छा! ईश्वर तुम्हें सफल बनाए।” गुरुदेव ने मेरी पीठ थपथपाई, ”देखो! अच्छा लिखने के लिए बहुत गहन अध्ययन की आवश्यकता होती है। नये- पुराने लेखकों को गंभीरतापूर्वक पढ़ते रहो।”
-“गुरुदेव यही तो समस्या है कि जब किसी किताब को गंभीरतापूर्वक पढ़ने लगता हूँ तो गहरी नींद आ जाती है…..और फिर….!”
-“क्या…. सच में तुम्हें नींद आ जाती है!” वे बहुत गंभीर हो गये, “अच्छा किस वक्त नींद आती है!”
-“किसी भी वक्त…..दिन हो या रात…..सुबह हो या शाम!” -“बहुत अच्छी बात है कि तुम्हें नींद आती है!” वे इतना बोलकर और भी गंभीर हो गये। फिर वे जेब से रूमाल निकालकर अपनी आँखें पोछने लगे। रूंधे हुए स्वर में बोले- “जब नींद आए तो, सो जाया करो! नींद बहुत कीमती चीज होती है।”
-“लेकिन गुरुदेव! पढ़ाई……!”
-“कुछ नहीं…..कहा न कि नींद आए तो सो जाया करो।” उनके स्वर में अब तल्खी थी, लेकिन वे अपनी दोनों आँखें बार-बार पोछते रहे!
मुझे कुछ भी बोलने की हिम्मत नहीं हुई।
गुरुदेव फिर बोलने लगे- “जब नींद आए तो सो जाया करो! और जब भूख लगे तो जी भरकर खा लिया करो! जीवन में एक दौर ऐसा आता है जब, न भूख लगती है,न नींद आती है।खाने का लाख इंतजाम हो, पर भूख ही नहीं लगेगी और लाख फुरसत हो, पर नींद ही नहीं आएगी……!” इतना बोलकर वे फिर अपनी आँखें पोछने लगे! *******************************************