आधुनिक भारत के निर्माण में जिन महापुरुषों की महनीय भूमिका है, उनमें बाबासाहब भीमराव अंबेडकर अग्रगण्य हैं। उन्होंने ही आधुनिक भारत में विविध विषमता के खिलाफ समतामूलक समाज की स्थापना पर सर्वाधिक जोर दिया। सही अर्थ में आजाद भारत का जो स्वरूप है, वह निश्चय ही बाबासाहब की देन है। बाबासाहब का जन्म 14 अप्रैल,1891 ई. में महाराष्ट्र के रत्नागिरि नामक स्थान पर एक तथाकथित अछूत परिवार में हुआ। यही कारण है कि उनके स्वयं का जीवन ही उनकी अनुभूति का खजाना है। अछूत परिवार में उत्पन्न होने के कारण उन्होंने जड़तावादी तथा रूढ़िग्रस्त भारतीय समाज में व्याप्त विषमता के दंश को भोगा और जिया था। अतएव उनके चिंतन के केंद्र में उनका अपना ही जीवन है।
अनेक विषयों के अधिकारी विद्वान, विधिवेता, महान अर्थशास्त्री, कुशल राजनीतिज्ञ, प्रखर वक्ता, संविधान निर्माता, समाज सुधारक तथा सबसे बढ़कर एक सिद्धहस्त लेखक के रूप में चर्चित अंबेडकर हम भारतीयों के लिए प्रकाश पुंज की भाँति हैं। ये अलग सवाल है कि एक साजिश के तहत उन्हें दलितों का उद्धारक और आरक्षण का पिता करार देकर एक निश्चित फर्मे में कैद कर दिया है। जो अंबेडकर आधुनिक भारत के निर्माता है, उन्हें एक निश्चित चश्में से देखने की परंपरा बन गई है। सच में बाबासाहब आरक्षण के पुरोधा नहीं हैं। बल्कि वे समाज के सभी वर्गों के प्रतिनिधित्व के हिमायती हैं। समता, स्वतंत्रता और बंधुता की जो मांग उन्होंने की थी वह न्यायसंगत ही है। यह देश उछलकूद करने वाले मुट्ठीभर पूँजीपतियों, सवर्णों या शिक्षितों का ही नहीं है। इस पर सभी जन- समुदाय कि बराबर का हक है। अंबेडकर जी उसी हक की लड़ाई लड़ते हैं। इस लड़ाई को लड़ने के लिए उनके पास पुख़्ता हथियार था। उन्होंने भारत समाज की जातीय संरचना का गंभीरतापूर्वक अध्ययन मनन किया था। ‘कास्ट इन इंडिया’, ‘द अनटचेवल’ तथा ‘हू वेयर द शूद्राज’ नामक पुस्तक उसी अध्ययन मनन का परिणाम है।
अंबेडकर सही अर्थ में आधुनिक भारत के निर्माता हैं। इस बात को अबतक सर्वस्वीकृत नहीं किया जा सका है, चूँकि समाज का एक वर्ग उन्हें दलितों का मसीहा कहकर मुख्यधारा से खारिज कर देते हैं। जबकि अंबेडकर ने समाज के सभी वर्गों के अधिकार और प्रतिनिधित्व की बात की है।
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